इसे ज्ञानकूप भी कहते हैं। यह स्थान जन्मभूमि से ६० गज की दूरी पर स्थित है। कहते हैं कि यह कुआँ महाराज दशरथजी के मध्य आँगन में बना था। जब जानकी जी विवाह कर आयीं, तब इस कुएं की पूजा हुयी थी।
इस कुएं का जल पीने से अनेकों असाध्य रोगों की निवृति होती है और मूर्खों को ज्ञान प्राप्त होता है। मूल नक्षत्र में पैदा हुए नवजात शिशु की गृह शांति पूजा में इसका जल विशेष रूप से काम में आता है।