रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई अर्थ सहित – Ramayan Chaupai in Hindi

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

अर्थ : हे नाथ ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख और समृद्धि) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ विभिन्न प्रकार की विपत्ति (दुःख) का वाश होता है।

बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं सत्संग के बिना विवेक नहीं होता अर्थात अच्छा बुरा समझने की क्षमता विकसित नहीं होती है राम की कृपा अच्छी संगति की प्राप्ति नहीं होती है सत्संगति से ही हमें अच्छे ज्ञान की प्राप्ति होती है दुष्ट प्रकृति के लोग भी सत्संगति वैसे ही सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर सोना बन जाता है।

जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं जिस मनुष्य पर राम की कृपा होती है उस पर सभी को की कृपा होने लगती है । और जिनके मन में कपट, दम्भ और माया नहीं होती, उन्हीं के हृदय में भगवान राम का निवास होता है।

कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥

अर्थ : हे तात आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें और मेरे सभी कार्य को पूर्ण करें आप दीनदयाल हैं सभी व्यक्तियों के कष्ट दूर करना की प्रकृति है इसलिए आप मेरे सभी कष्टों को दूर कीजिए

हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥

अर्थ : भगवान हरि अनंत है उनकी कथाओं का भी कोई अंत नहीं है उनकी कथाओं का रसपान लोग अलग-अलग तरह से करते हैं अर्थात कथाओं की विवेचना लोग अलग-अलग करते हैं राम का चरित्र किस तरह है करोड़ों बार भी उसको गाया नहीं जा सकता है

धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी॥

अर्थ तुलसीदास जी कहते हैं कि धीरज धर्म मित्र और नारी इन चारों लोगों की परीक्षा आपके विपत्ति के समय ही होती है

जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥

अर्थ : भगवान शिव कहते हैं हे भवानी सुनो – जिनका नाम जपकर जन्म-मरण के बंधन को काटा जा सकता है क्या उनका दूत किसी बंधन में बंध सकता है लेकिन प्रभु के कार्य के लिए हनुमान जी ने स्वयं को शत्रु के हाथ से बंधवा लिया।

रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई॥

अर्थ रघु की कुल की सदा ऐसी रीत चली आई है प्राण तो चले जाते हैं लेकिन कभी भी वचन की मर्यादा नहीं जाती है

एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥

अर्थ : रामचरितमानस में श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, मंगल करने वाला और अमंगल को हरने वाला है, जिसे पार्वती जी सहित स्वयं भगवान शिव सदा जपा करते हैं।

जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥

अर्थ : आपके मन में भावना जिस तरह की रहती है प्रभु के दर्शन भी उसी रूप में होता है

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा।
गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥

अर्थ : होगा वही जो प्रभु राम जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार)से कोई लाभ नहीं। ऐसा कहकर भगवान शिव हरि का नाम जपने लगे और सती वहाँ गईं जहाँ सुख के धाम प्रभु राम थे।

करमनास जल सुरसरि परई,
तेहि काे कहहु सीस नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना,
बालमीकि भये ब्रह्म समाना।।

अर्थ: कर्मनास का जल यदि गंगा में पड़ जाए तो कहो उसे कौन नहीं सिर पर रखता है अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार को विदित है की उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।

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