सुंदरकांड रामायण चौपाई
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तापत्रय शोक निकट नहीं आना॥
जै हनुमान ज्ञान गुण सागर। जै कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
देवन आनि करि बिम्ब विचारा। लंकेश्वर भए सब जग जारा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महंडेरा॥
देहि मुख विजय वारीयाँ। बोलति चालि राम सदा सुखरीयाँ॥
ये चौपाई सुंदरकांड के अंत में प्रयोग होने वाली हैं। इन चौपाईयों में हनुमान जी की महिमा, उनके ज्ञान और गुणों का वर्णन किया गया है। इन चौपाईयों का जाप और पाठ सुंदरकांड के पाठ के साथ किया जाता है ताकि भगवान् श्री राम की कृपा और हनुमान जी की सहायता से संकटों का नाश हो और जीवन में सुख और शांति का प्राप्त हो।