Mani Parvat Ayodhya

रामायण में इस बात का उल्‍लेख किया गया है कि जब भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्‍मण को मेघनाद ने युद्ध के दौरान घायल कर दिया था तो उनहे संजीवनी बूटी की जरूरत थी और हनुमान जी ने संजीवनी बूटी वाला पूरा पहाड़ ही उठाकर ले आए थे। किवंदतियों के अनुसार, पहाड़ का छोटा सा हिस्‍सा यहां गिर गया था। इस टीले को या पहाड़ी को मणि पर्वत के नाम से जाना जाता है।

इस पर्वत के पास में ही एक और टीला स्थित है जिसे सुग्रीव पर्वत कहा जाता है।  मणि पर्वत की ऊंचाई 65 फीट है। यह पर्वत कई मंदिरों का घर है। अगर आप पहाड़ी की चोटी पर खड़े होते है तो पूरे शहर और आसपास के क्षेत्रों का मनोरम दृश्‍य नजर आता है। यह माना जाता है कि भगवान बुद्ध, अयोध्‍या में 6 साल रूके थे और उन्‍होने मणि पर्वत पर ही अपने शिष्‍यों को धर्म का ज्ञान दिया था। इस पर्वत पर सम्राट अशोक के द्वारा बनवाया एक स्‍तुप है। इस पर्वत के पास में ही प्राचीन बौद्ध मठ भी है। टीले के निचले हिस्‍से में एक मुस्लिम कब्र यार्ड भी बना हुआ है।

धर्म नगरी अयोध्या में श्रावण मास, तृतीया तिथि, हरियाली तीज के दिन मणि पर्वत पर भगवान श्री राम मां सीता के साथ झूला झूलते हैं. इसी के साथ अयोध्या में श्रावण पूर्णिमा तक सभी मंदिरों के अंदर झूलन उत्सव की शुरुआत हो जाती है और मंदिर में रखें चल विग्रह झूले पर विराजमान हो जाते हैं.मान्यता है कि श्रावण मास में हरियाली तीज से शुरू हुए झूलन उत्सव में भगवान को झूला झुलाने से जीवन मरण के झूले से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि देश विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु अयोध्या पहुंचते हैं.

मणि पर्वत में भगवान को झूला झूलते हैं. श्रद्धालु मंदिरों में झूला झुलाते हैं, पूजा अर्चना दर्शन करते हैं और अपने जीवन को सफल बनाने की कामना करते हैं

आपको हम ले चलते हैं मणि पर्वत की यात्रा पर और बताते हैं कि मणि पर्वत का महत्व क्या है?

बन गया मणियों का पहाड़

मान्यता है कि भगवान श्री राम जब विवाह के उपरांत मां सीता को अयोध्या लेकर आए तो महाराजा जनक ने उपहार स्वरूप मणियों की श्रंखला भेंट किया था. जिसको महाराजा दशरथ ने विद्या कुंड के पास रखवा दिया. इतनी ज्यादा मणियां थी कि वहां मणियों का पहाड़ बन गया. जो आज मणि पर्वत के रूप में प्रसिद्ध है. इस ऐतिहासिक मणि पर्वत पर भगवान श्री राम मां सीता के साथ श्रावण मास में तृतीया तिथि हरियाली तीज के दिन झूला लगा कर झूला झूले थे. इस त्रेतायुगीन झूलनोत्सव परंपरा आज कलयुग में भी चली आ रही है.

देश-विदेश से अयोध्या पहुंचते हैं रामभक्त 

आज के दिन सभी मंदिरों से भगवान के विग्रह ढोल नगाड़ों के साथ मणि पर्वत लाए जाते हैं यहां पर भगवान के चल विग्रह को झूला जलाया जाता है मणि पर्वत में बने भगवान राम मां सीता के मंदिर का दर्शन कराया जाता है और फिर उस विग्रह को वापस मंदिर ले जाते हैं और उनको झूले पर विराजमान करते हैं. हरियाली तीज से ही झूलन उत्सव की शुरुआत हो जाती है जो सावन की पूर्णिमा तक चलती है. इस दौरान देश विदेश के राम भक्त श्रद्धालु अयोध्या पहुंचते हैं.मणि पर्वत में पहाड़ पर चढ़कर भगवान राम और सीता के विग्रह को झूला झूल आते हैं.

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